दिल में जगह दूँ तुम को अपने पहले से हैं मेहमान बहुत

दिल में जगह दूँ तुम को अपने पहले से हैं मेहमान बहुत
तुम देखो कोई और ठिकाना हो जाओगे परेशान बहुत,

उस को भुलाने की कोशिश मैं जितनी करता हूँ यारो
उसकी याद के सीने में मेंरे चुभते हैं पैकान बहुत,

कौन जिए अब जाँ को जला कर रहने दो मर जाते हैं
इश्क़ में मर जाना ही हम को लगता है आसान बहुत,

उससे मिला तो देखा मैं ने था ख़ुद से बेगाना वो
उससे मिलने का था मुझ को जाने क्यों अरमान बहुत,

तेरे दिल को अपनी यादों से रखा आबाद मगर
कर बैठे हम अपने दिल को ख़ुद ही अब वीरान बहुत,

काग़ज़ के फूलों से अपने घर को महकाना चाहा
इस ख़्वाहिश में मैं ने बदले रोज़ नए गुलदान बहुत,

नाज़ था मुझ को अपने दिल पर रुस्वा न होने देगा ये
यूँ सरका पहलू से मेरे रखा दिल का ध्यान बहुत,

अब तो तुम्हें हम भूल गए हैं क्यों आती हो याद हमें
याद किया करते थे तुम को जब हम थे परेशान बहुत,

तुम ख़ुशियों में डूबे हुए थे ग़म की सदाएँ क्यों सुनते ?
तुम को पुकारा दर्द में अपने जब हम थे बेजान बहुत,

अब देखो इरशाद यही सच्चाई है दिल वालों की
इश्क़ जो दिल से करते हैं वो रहते हैं परेशान बहुत..!!

~इरशाद अज़ीज़

संबंधित अश'आर | गज़लें

Leave a Reply