कभी इस से कभी उस से मिला देता है
मे’यार अपना क्यूँ नज़रों से गिरा देता है ?
दिल न तोड़ेगा मेरा अब कभी भी
वायदा कर के फिर ख़ुद ही भूला देता है,
जलाता है मुहब्बत की शमअ मेरे दिल में
हवा दे कर कभी ख़ुद ही बुझा देता है,
हँसाता है अपनी बातों से लुभाते हुए मेरा दिल
फिर न जाने क्यूँ पल भर में रुला देता है ?