दरियाँ का शोर मचाना और समंदर का ख़ामोश रहना

दरियाँ का शोर मचाना और समंदर का ख़ामोश रहना
वक़्त आने पर हर एक के हुनर ए खास बदल जाते है,

जब मैं ख़ामोश रहूँ तो बहस करते है मेरी परवरिस पर
और मेरी चुप्पी टूटते ही उनके सवालात बदल जाते है,

ये दौलत, ये हुकूमत, ये दबदबा, ये नशा, ये तक़व्वुर
मुसाफिर है, वक़्त-बेवक़्त इनके घरबार बदल जाते है,

ना कर तू यहाँ ऐ नादाँ किसी से भी उम्मीदें बेहिसाब
मतलबी दुनियाँ में वक़्त के साथ जज़्बात बदल जाते हैं,

अगर ठुकराता है तुझे कोई तो निराश मत हो ऐ इंसान
गर दुआएँ कबूल न हो तो यहाँ भगवान बदल जाते है,

तुझे ठोकरे ही सिखाती है मुसीबतों से लड़ने का हुनर
गर हवाएँ हो जाए तेज़ तो क्या कभी बाज़ बदल जाते है ?

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