ज़िहानतों को कहाँ कर्ब से फ़रार मिला
जिसे निगाह मिली उस को इंतिज़ार मिला,
वो कोई राह का पत्थर हो या हसीं मंज़र
जहाँ भी रास्ता ठहरा वहीं मज़ार मिला,
कोई पुकार रहा था खुली फ़ज़ाओं से
नज़र उठाई तो चारों तरफ़ हिसार मिला,
हर एक साँस न जाने थी जुस्तुजू किस की
हर एक दयार मुसाफ़िर को बे दयार मिला,
ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई
जो आदमी भी मिला बन के इश्तिहार मिला..!!
~निदा फ़ाज़ली
























