ज़माने में कहीं दिल को लगाना भी ज़रूरी था
ग़लत कुछ भी नहीं लेकिन छुपाना भी ज़रूरी था,
ग़म ए दौराँ में हम को मुस्कुराना भी ज़रूरी था
कि काँटों से हमें दामन बचाना भी ज़रूरी था,
ज़माना क्या कहेगा ये नहीं सोचा कभी हम ने
जो था दिल में हमारे वो बताना भी ज़रूरी था,
हमें पत्थर भी खाने थे हमें गाली भी खानी थी
मगर दुनिया को आईना दिखाना भी ज़रूरी था,
हमें हँसते हुए बस देखता तो रूठ जाता वो
हमें हँसते हुए आँसू बहाना भी ज़रूरी था,
न हम सोए न वो सोए न आई नींद दोनों को
मगर जलते चराग़ों को बुझाना भी ज़रूरी था..!!
~अज्ञात
दिल के तातार में यादों के अब आहू भी नहीं
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