यूँ ही राह ए वफ़ा की सलीब पर दो क़दम उठाने के शुक्रिया

यूँ ही राह ए वफ़ा की सलीब पर दो क़दम उठाने के शुक्रिया
बड़ा पुर खतर है ये रास्ता, तेरे लौट जाने का शुक्रिया,

जो उदास हैं तेरे हिज्र में जिन्हें बोझ लगती है ज़िन्दगी
सर ए बज़्म यूँ उन्हें देख कर, तेरे मुस्कुराने का शुक्रिया,

तेरी याद किस किस भेस में मेरे शेर ओ नग्मा में ढल गई
ये कमाल था तेरी याद का, मुझे याद आने का शुक्रिया,

मुझे ख़स्ता हाल देख कर तेरे फूल से लब खिल उठे
मुझे अपने हासिल का गम नहीं, तेरे मुस्कुराने का शुक्रिया,

जो ज़माने भर का असूल था वो असूल तूने निभा दिया
यही रस्म ठहरी है मोअतबर, मुझे भूल जाने का शुक्रिया..!!

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