यूँ बात बात पे कर के मुकालमा मुझसे
वो खुल रहा है मुसलसल ज़रा ज़रा मुझसे,
मैं शाख ए उमर पे बस सूखने ही वाला था
लिपट गया कोई आ कर हरा भरा मुझसे,
मैं उसके पहले वरक पर रुका हुआ हूँ अभी
सो खत्म होगा कहाँ अब मुताअला मुझसे,
पसंद आ गई कैसे उसे ये खाक़ मेरी
वो आसमान भला कैसे आ लगा मुझसे,
वो गुल बदन है तो मैं गुलबदन ही लिखूँगा
कि सच तो ये है न होगा मुबालग़ा मुझसे,
ये शायरी तो कोई और कर रहा है कही
मैं लिख रहा हूँ वही जो कहा गया मुझसे..!!