ये जो पल है ये पिछले पल से भी भारी है
हमसे पूछो हमने ज़िन्दगी कैसे गुज़ारी है,
ये दुनियाँ आज तक कौन जीत सका है ?
ये जिसने भी जीती है उसने भी हारी है,
इधर उनकी वो यादें अब भी ताज़ा है
उधर उनकी बातों में अब दुनियादारी है,
जो दगा देने में बहुत ज्यादा माहिर है
दिल्ली पे उसी की मजबूत दावेदारी है,
जहाँ अश्क कहकहे ज़ख्म कई मौसम मिले
समझ लेना बस वही रुदाद हमारी है..!!
~दर्पन कानपुरी