तू तो तन्हा सर ए बाज़ार निकल जाता है
देखते देखते माहौल बदल जाता है,
तुम ने हर बार मेरे इश्क़ का इंकार किया
इतनी कोशिश में फटा नोट भी चल जाता है,
जब भी लगती है भनक आप से मंसूब हूँ मैं
सामने वाले का लहजा ही बदल जाता है,
देर तक रह नहीं पाती तेरे चेहरे पे नज़र
इस चढ़ाई पे मेरा पाँव फिसल जाता है,
धूप से हाथ छुड़ाया तो हमें इल्म हुआ
साया औक़ात से बाहर भी निकल जाता है..!!
~इब्राहीम अली ज़ीशान
आँख से कैसे कहूँ अब भी अंधेरा देखे
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