तू ने अपना जल्वा दिखाने को जो नक़ाब मुँह से उठा दिया
वहीं महव ए हैरत ए बे ख़ुदी मुझे आइना सा बना दिया,
वो जो नक़्श ए पा की तरह रही थी नुमूद अपने वजूद की
सो कशिश ने दामन ए नाज़ की उसे भी ज़मीं से मिटा दिया,
रग ओ पै में आग भड़क उठी फुंके है पड़ा ये सभी बदन
मुझे साक़िया मय ए आतिशीं का ये जाम कैसा पिला दिया,
जभी जा के मकतब ए इश्क़ में सबक़ ए मक़ाम ए फ़ना लिया
जो लिखा पढ़ा था नियाज़ ने सो वो साफ़ दिल से भुला दिया..!!
~अज्ञात
मोहब्बत ही न जो समझे वो ज़ालिम प्यार क्या जाने
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