तमाम उम्र कटी उसकी मेज़बानी में
बिछड़ गया था कभी जो भरी जवानी में,
हमारे होने तलक सब को मुश्किलात रहें
हमारे बाद सभी ख़ुश रहे कहानी में,
ख्याल, ख़्वाब, तेरी याद हम उठा लाये
मिली न चीज कोई और जब निशानी में,
फुसूं था ऐसा कोई उसकी मुस्कराहट में
दो चार दिन तो रहे हम भी ख़ुश गुमानी में,
सवाल याद नहीं पर जवाब अज़बर है
तुम्हारे जैसे हज़ारों है राजधानी में,
शिकस्त खुर्दा हूँ लेकिन ख़बर ये रखता हूँ
गँवाएँ बैठा है क्या क्या तू कामरानी में,
ज़माना यूँ ही नहीं हम ख्याल है मेरा
कि उसके साथ गुज़ारी है बेज़ुबानी में,
गुज़र गई है तो अब बैठ कर ये सोचते है
यही गुज़ारने आये थे दार ए फ़ानी में,
अज़ल की प्यास का अब्रक हुआ मदावा हूँ
हमारी आँख को रखा गया है पानी में..!!