ख़रीद कर जो परिंदे उड़ाए जाते है
ख़रीद कर जो परिंदे उड़ाए जाते हैंहमारे शहर में कसरत से पाए जाते है, मैं देख आया हूँ
ख़रीद कर जो परिंदे उड़ाए जाते हैंहमारे शहर में कसरत से पाए जाते है, मैं देख आया हूँ
मिल के तुमको छोड़ दे कोई मज़ाक थोड़ी है हम दोनों जो मिले हैये इत्तेफ़ाक थोड़ी है, मिल
मुझे गुमनाम रहने काकुछ ऐसा शौक है हमदमकिसी बेनाम सहरा मेंभटकती रूह हो जैसे, जहाँ साये तरसते होकिसी
इख़्तियार ए संजीदगीअक्सर जवानी उजाड़ देती है रवानी ए ज़िन्दगी कोवहशत उजाड़ देती है, एक छोटी सी गलती
बेलौस मुफ़्लिसी भी है क़ुबूल मुझेमगर अमीर ए शहर बदकार नहीं, दुश्मन ए बदतर से भी निभा लूँगामगर
तड़पता हूँ मैं लैल ओ नहारलम्हा भर वो भी तड़पती होगी दुआओं में वो भी ख़ुदा सेकोई फ़रियाद
रूबरू हो कर भी इस ज़माने मेंकिसी पे ऐतबार कहाँ करते है लोग ? मतलबपरस्तो की इस दुनियाँ
इन्सान हूँ इंसानियत की तलब हैकिसी खुदाई का तलबगार नहीं हूँ, ख़ुमारी ए दौलत ना शोहरत का नशाअबतक
अपनी खताओ पे शर्मिन्दा भी हो जाता हूँमुझे तुम्हारी तरह बहाने बनाना नहीं आता, गर हूँ ख़तावार तो
चाहते है इज्ज़त ओ मुक़ाम ए बलंदी तोसर को खालिक़ के आगे झुका लीजिए, गर है ख्वाहिश पाने