अब के रुत बदली तो ख़ुशबू का सफ़र देखेगा कौन…
अब के रुत बदली तो ख़ुशबू का सफ़र देखेगा कौन ज़ख़्म फूलों की तरह महकेंगे …
अब के रुत बदली तो ख़ुशबू का सफ़र देखेगा कौन ज़ख़्म फूलों की तरह महकेंगे …
एक दिन ख़ुद को अपने पास बिठाया हमने पहले यार बनाया फिर समझाया हमने, ख़ुद …
बरसों जुनूँ सहरा सहरा भटकाता है घर में रहना यूँही नहीं आ जाता है, प्यास …
आया ही नहीं कोई बोझ अपना उठाने को कब तक मैं छुपा रखता इस ख़्वाब …
अब इस मकाँ में नया कोई दर नहीं करना ये काम सहल बहुत है मगर …
छोड़ो अब उस चराग़ का चर्चा बहुत हुआ अपना तो सब के हाथों ख़सारा बहुत …
सवाद ए शाम न रंग ए सहर को देखते हैं बस एक सितारा ए वहशत …
लोग कहते थे वो मौसम ही नहीं आने का अब के देखा तो नया रंग …
किसी से क्या कहे सुने अगर गुबार हो गए हम ही हवा की ज़द में …
ज़िंदगी ये तो नहीं तुझ को सँवारा ही न हो कुछ न कुछ हम ने …