ये क़ुदरत भी अब तबाही की हुई शौक़ीन
ये क़ुदरत भी अब तबाही की हुई शौक़ीन लगती है ऐ दौर ए ज़दीद साज़िश …
ये क़ुदरत भी अब तबाही की हुई शौक़ीन लगती है ऐ दौर ए ज़दीद साज़िश …
बात अब करते है क़तरे भी समंदर की तरह लोग ईमान बदलते है कलेंडर की …
वो एक लफ़्ज़ जो बेसदा जाएगा वही मुद्दतों तक सुना जाएगा, कोई है जो मेरे …
मुक़द्दर ने कहाँ कोई नया पैग़ाम लिखा है अज़ल ही से वरक़ पर दिल के …
मुझे तन्हाई के ग़म से बचा लेते तो अच्छा था सफ़र में हमसफ़र अपना बना …
सुबह तक मैं सोचता हूँ शाम से जी रहा है कौन मेरे नाम से, शहर …
नदी के पार उजाला दिखाई देता है मुझे ये ख़्वाब हमेशा दिखाई देता है, बरस …
ज़बाँ है मगर बे ज़बानों में है नसीहत कोई उसके कानों में है, चलो साहिलों …