दर्द अब वो नहीं रहें जो ऐ दिल ए नादां पहले था
दर्द अब वो नहीं रहें जो ऐ दिल ए नादां पहले था खुले सर पर …
दर्द अब वो नहीं रहें जो ऐ दिल ए नादां पहले था खुले सर पर …
राहत ए वस्ल बिना हिज्र की शिद्दत के बग़ैर ज़िंदगी कैसे बसर होगी मोहब्बत के …
ये मुहब्बतों के किस्से भी अज़ीब होते है बेवफ़ा ही इसमें अक्सर अज़ीज़ होते है, …
दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो इस बात …
तूने देखा है कभी एक नज़र शाम के बाद कितने चुपचाप से लगते हैं शजर …
वही फिर मुझे याद आने लगे हैं जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं, वो हैं …
न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से तमद्दुन में निखार आता है …
आज सीलिंग फैन से लटकी हुई है ये मुहब्बत किस कदर भटकी हुई है, गैरो …
यूँ बेदर्द बन कर ना रहा कीजिए मेरे मर्ज़ की भी तो कोई दवा कीजिए, …