लेता हूँ उस का नाम भी आह ओ बुका…
लेता हूँ उस का नाम भी आह ओ बुका के साथ कितना हसीन रिश्ता है …
लेता हूँ उस का नाम भी आह ओ बुका के साथ कितना हसीन रिश्ता है …
ऐ लिखने वाले आख़िर तू ही क्यूँ लिखता है ? है ये दर्द सबको फिर …
ज़िंदगी दी है तो जीने का हुनर भी देना पाँव बख़्शें हैं तो तौफ़ीक़ ए …
खो न जाए कहीं हर ख़्वाब सदाओं की तरहज़िंदगी महव-ए-तजस्सुस है हवाओं की तरह टूट …
कब तक यूँ बहारों में, पतझड़ का चलन होगाकलियों की चिता होगी, फूलों का हवन …
मुफ़्लिस हो कि रईसए शहरकोईख़ुदा की नज़र में एक सा हर बशर होता है, इबादत …