सोयें कहाँ थे आँखों ने तकिए भिगोये थे
हम भी कभी किसी के लिए ख़ूब रोये थे,
अँगनाई में खड़े हुए बेरी के पेड़ से
वो लोग चलते वक़्त गले मिल के रोये थे,
हर साल ज़र्द फूलों का एक काफ़िला रुका
उसने जहाँ पे धूल अटे पाँव धोये थे,
इस हादसे से मेरा ताअल्लुक़ नहीं कोई
मेले में एक साथ कई बच्चे खोये थे,
आँखों की कश्तियों में सफ़र कर रहे है वो
जिन दोस्तों ने दिल के सफ़ीने डुबोये थे,
कल रात मैं था मेरे अलावा कोई न था
शैतान मर गया था फ़रिश्ते भी सोये थे..!!
~बशीर बद्र