सितारों को जो छू कर देखते है
सिकंदर है मुक़द्दर देखते है,
समन्दर में हमें दिखते है क़तरे
वो क़तरों में समन्दर देखते है,
दरियाँ से भी कुछ आगे है मंज़िल
ज़मीं तुम, हम तो अम्बर देखते है,
निकलना भी ज़रूरी है सफ़र पर
कभी सहरा कभी घर देखते है,
बनाया जब से शीशे का घरौंदा
हर एक पत्थर को डर कर देखते है,
खज़ाने हैं मुक़द्दर में उन्ही के
जो हर सीपी में गौहर देखते है,
ना जाने हम मुन्तज़िर किस चीज के है
जबकि बे अम्ली को घर घर देखते है..!!