सज़दे के सिवा सर को झुकाना नहीं आता…

रूठे हुए लोगो को मनाना नहीं आता
सज़दे के सिवा सर को झुकाना नहीं आता,

पत्थर तो चलाना मुझे आता है दोस्तों !
शाखों से परिंदों को उड़ाना नहीं आता,

नफ़रत तो जताने में नहीं चूकते हो तुम
मगर हैरत है तुम्हे प्यार जताना नहीं आता,

मैं इस लिए नाक़ाम मुहब्बत में रह गया
करना झूठा मुझे वादा या बहाना नहीं आता,

सारे शहर को राख में तब्दील कर गया
वो जिसे तुम कहते थे आग लगाना नहीं आता,

होंठो पे सजी रहती है मुस्कान इस लिए
क्योकि सीने में मुझे दर्द छुपाना नहीं आता..!!

~सिराज फैसल

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