समन्दर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं

समन्दर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
तेरी आँखों को पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,

तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छीन गई जब से
कोई भी लफ्ज़ लिखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,

तेरी यादों की ख़ुशबू खिड़कियों में रक्स करती हैं
तेरे गम में सुलगता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,

न जाने हो गया हों इस क़दर हस्सास मैं कब से
किसी से बात करता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं,

हज़ारों मौसमों की हुक्मरानी है मेरे दिल पर
मैं जब भी हँसता हूँ तो आँखे भीग जाती हैं..!!

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