कभी कभी कितना नुक़सान उठाना पड़ता है
कभी कभी कितना नुक़सान उठाना पड़ता है ऐरों ग़ैरों का एहसान उठाना पड़ता है, टेढ़े …
कभी कभी कितना नुक़सान उठाना पड़ता है ऐरों ग़ैरों का एहसान उठाना पड़ता है, टेढ़े …
जाग उठेंगे दर्द पुराने ज़ख़्मों की अँगनाई में दिल की चोट उभर आएगी मत निकलो …
बा वक़्त ए शाम सूरज से हुकुमत छीन लेता है सहर होते ही सितारों से …
बहुत उदास है दिल जाने माजरा क्या है मेरे नसीब में गम के सिवा धरा …
सुकुन के दिन फ़रागत की रात से भी गए तुझे गँवा के हम भारी कायनात …
कोई महबूब सितमगर भी तो हो सकता है फूल के हाथ में खंजर भी तो …
जिसके साथ अपनी माँ की दुआ होती है उसके मुक़द्दर में जन्नत की हवा होती …
फूल का शाख़ पे आना भी बुरा लगता है तू नहीं है तो ज़माना भी …
हर घड़ी चश्म ए ख़रीदार में रहने के लिए कुछ हुनर चाहिए बाज़ार में रहने …