बुझ गई आँख तेरा इंतज़ार करते करते

bujh-gayi-aankh-tera-intazar

बुझ गई आँख तेरा इंतज़ार करते करते टूट गए हम एक तरफ़ा प्यार करते करते, क़यामत है इज़हार

ये और बात है तुझ से गिला नहीं करते

ये और बात है

ये और बात है तुझ से गिला नहीं करते जो ज़ख़्म तू ने दिए हैं भरा नहीं करते,

थे ख़्वाब एक हमारे भी और तुम्हारे भी

थे ख़्वाब एक हमारे

थे ख़्वाब एक हमारे भी और तुम्हारे भी पर अपना खेल दिखाते रहे सितारे भी, ये ज़िंदगी है

तेरा ये लुत्फ़ किसी ज़ख़्म का उन्वान न हो

तेरा ये लुत्फ़ किसी

तेरा ये लुत्फ़ किसी ज़ख़्म का उन्वान न हो ये जो साहिल सा नज़र आता है तूफ़ान न

वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे…

wo gazal walo ka usloob

वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे, इतनी मिलती है मेरी

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे…

jahan ped par chaar daane

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे हज़ारों तरफ़ से निशाने लगे, हुई शाम यादों के एक गाँव में

है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र…

है अजीब शहर की

है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बदमिज़ाज सी

वहशतें बिखरी पड़ी है जिस तरफ़ भी…

वहशतें बिखरी पड़ी है

वहशतें बिखरी पड़ी है जिस तरफ़ भी जाऊँ मैं घूम फिर आया हूँ अपना शहर तेरा गाँव मैं,

क्या शर्त ए मुहब्बत है, क्या शर्त…

क्या शर्त ए मुहब्बत

क्या शर्त ए मुहब्बत है, क्या शर्त ए ज़माना है ! आवाज़ भी ज़ख़्मी है मगर गीत भी

काँटो का एक मकान मेरे पास रह गया

काँटो का एक मकान

काँटो का एक मकान मेरे पास रह गया एक फूल सा निशान मेरे पास रह गया, सामान तू