इक तेज़ तीर था कि लगा और निकल गया…
इक तेज़ तीर था कि लगा और निकल गयामारी जो चीख़ रेल ने जंगल दहल …
इक तेज़ तीर था कि लगा और निकल गयामारी जो चीख़ रेल ने जंगल दहल …
ग़ैरों से मिल के ही सही बे-बाक तो हुआबारे वो शोख़ पहले से चालाक तो …
है शक्ल तेरी गुलाब जैसीनज़र है तेरी शराब जैसी, हवा सहर की है इन दिनों …
ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहींतू ने मुझ को खो दिया …
चादर की इज्ज़त करता हूँऔर परदे को मानता हूँ, हर परदा परदा नहीं होताइतना मैं …
उसे कहना मुहब्बत दिल के ताले तोड़ देती हैउसे कहना मुहब्बत दो दिलो को जोड़ …
कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहज़े मेंअज़ब तरह की घुटन है हवा के लहज़े …
ख़बर क्या थी कि ऐसे अज़ाब उतरेंगेजो होंगे बाँझ वो आँखों में ख़्वाब उतरेंगे, सजेंगे …
अपने एहसास से छू कर मुझे संदल कर दोमैं कि सदियों से अधूरा हूँ मुकम्मल …
अभी तो इश्क़ में ऐसा भी हाल होना हैकि अश्क रोकना तुम से मुहाल होना …