पढ़ती रहती हूँ मैं सारी चिट्ठियां
रात है और है तुम्हारी चिट्ठियां,
आओ तो पढ़ कर सुनाऊँगी तुम्हें
लिख रखी हैं ढेर सारी चिट्ठियां,
लिख तो रखी हैं मगर भेजी नहीं
है अभी तक वो कुवांरी चिट्ठियां,
हम नज़र आयेंगे एक एक हर्फ़ में
जब जलाओगे हमारी चिट्ठियां,
डांटते अंजुम है मुझ को घर के लोग
सब ने पढ़ ली है तुम्हारी चिट्ठियां..!!
~ अंजुम रहबर