निय्यत ए शौक़ भर न जाए कहीं
तू भी दिल से उतर न जाए कहीं,
आज देखा है तुझ को देर के ब’अद
आज का दिन गुज़र न जाए कहीं,
न मिला कर उदास लोगों से
हुस्न तेरा बिखर न जाए कहीं,
आरज़ू है कि तू यहाँ आए
और फिर उम्र भर न जाए कहीं,
जी जलाता हूँ और सोचता हूँ
राएगाँ ये हुनर न जाए कहीं,
आओ कुछ देर रो ही लें नासिर
फिर ये दरिया उतर न जाए कहीं..!!
~नासिर काज़मी
नए कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ ?
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