नियाज़ ए इश्क़ से नाज़ ए बुताँ तक बात जा पहुँची

नियाज़ ए इश्क़ से नाज़ ए बुताँ तक बात जा पहुँची
ज़मीं का तज़्किरा था आसमाँ तक बात जा पहुँची,

मोहब्बत में कहीं एक राज़ दाँ तक बात जा पहुँची
बस अब क्या था ज़माने की ज़बाँ तक बात जा पहुँची,

ज़माना ताड़ लेगा मैं न कहता था ये अब समझे
मुझे दीवाना कहने से कहाँ तक बात जा पहुँची ?

निज़ाम ए मयकदा पर तब्सिरे और होश वालों में
यहीं से अज़्मत ए पीर ए मुग़ाँ तक बात जा पहुँची,

सुना ये था कि चश्मक बिजलियों को है बहारों से
हुआ ये है कि मेरे आशियाँ तक बात जा पहुँची,

रह ए मंज़िल में ऐ रह रह के हिम्मत हारने वाले
ख़बर भी है कि मीर ए कारवाँ तक बात जा पहुँची..!!

~रईस रामपुरी

तरह तरह के सवालात करते रहते हैं

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