मैंने पल भर में यहाँ लोगो को बदलते हुए देखा है
ज़िन्दगी से हारे हुए लोगो को जीतते हुए देखा है,
अक्सर पत्थरो में मैंने कीड़ो को पलते हुए देखा है
ग़रीब का हक़ शरीफ़ लोगो को खाते हुए देखा है,
बेबस और क्या करे बस अफ़सोस ही कर सकता है
दौलत के आगे जिसने मुन्सफ़ को बदलते हुए देखा है,
शाम को मैंने खाली हाथ परिन्दों को लौटते देखा है
फिर भी माल बरसो का लोगो को जोड़ते हुए देखा है,
पहचान असली चेहरे की भी करवा देता है बुरा वक़्त
मैंने मुश्किल हालात में रिश्तो को बदलते हुए देखा है,
~नवाब ए हिन्द