क्या क्या न सामने से ज़माने गुज़र गए
एक ग़म था जिस ने साथ न छोड़ा जिधर गए,
बेताब दिल के सामने और मस्लहत की बात
चाहा न जाएँ बज़्म में उन की मगर गए,
सुनते हैं दिन शबाब के जान ए हयात हैं
लेकिन वो सुब्ह ओ शाम जो रो कर गुज़र गए,
क्या क्या मज़े उठाए हैं ज़ब्त ए मलाल में
दिल ख़ून हो गया है जो आँसू ठहर गए,
डरता हूँ मैं कि ज़ब्त का दामन न छूट जाए
बंदा नवाज़ आप तो हद से गुज़र गए,
कुछ कम नहीं ये अज़्मत ए आवारगान ए इश्क़
दुनिया ने उँगलियाँ तो उठाईं जिधर गए,
देखा रईस तू ने ज़माने का ये तरीक़
अपने भी आज आँख बचा कर गुज़र गए..!!
~रईस रामपुरी
कौन कहता है कि पी कर दूर हो जाते हैं ग़म ?
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