कुछ लोग ख़यालों से चले जाएँ तो सोएँ
बीते हुए दिन रात न याद आएँ तो सोएँ,
चेहरे जो कभी हम को दिखाई नहीं देंगे
आ आ के तसव्वुर में न तड़पाएँ तो सोएँ,
बरसात की रुत के वो तरब रेज़ मनाज़िर
सीने में न एक आग सी भड़काएँ तो सोएँ,
सुब्हों के मुक़द्दर को जगाते हुए मुखड़े
आँचल जो निगाहों में न लहराएँ तो सोएँ,
महसूस ये होता है अभी जाग रहे हैं
लाहौर के सब यार भी सो जाएँ तो सोएँ..!!
~हबीब जालिब