कुछ चलेगा ज़नाब, कुछ भी नहीं
चाय, कॉफ़ी, शराब, कुछ भी नहीं,
चुप रहे तो कली लगे वो होंठ
हँस पड़े तो गुलाब कुछ भी नहीं,
जो ज़मीं पर है सब हमारा है
सब है अच्छा, ख़राब कुछ भी नहीं,
इन अमीरों की सोच तो ये है
हम गरीबो के ख़्वाब कुछ भी नहीं,
मन की दुनियाँ में सब ही उरियाँ है
दिल के आगे हिज़ाब कुछ भी नहीं,
उम्र अब अपनी अस्ल शक्ल में आ
क्रीम, पाउडर, खिज़ाब कुछ भी नहीं,
ज़िन्दगी भर का लेन देन अना
और हिसाब ओ क़िताब कुछ भी नहीं..!!
~अना क़ासमी