कितना सुकूत है रसन ओ दार की तरफ़
आता है कौन जुरअत ए इज़हार की तरफ़,
दश्त ए वफ़ा में आबला पा कोई अब नहीं
सब जा रहे हैं साया ए दीवार की तरफ़,
क़स्र ए शही से कहते हैं निकलेगा मेहर ए नौ
अहल ए ख़िरद हैं इस लिए सरकार की तरफ़,
वित्नाम ओ कोरिया से अदू को निकाल लें
आएँगे लौट कर लब ओ रुख़्सार की तरफ़,
बाक़ी जहाँ में रह गया ग़ालिब का नाम ही
हर चंद एक हुजूम था अग़्यार की तरफ़..!!
~हबीब जालिब

























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