क़िताब ए ज़ीस्त में ज़हमत के बाब इतने है
ज़रा सी उम्र मिली है अज़ाब इतने है,
ज़फ़ा, फ़रेब, तड़प, दर्द ओ गम, कसक,आँसू
हमारे सामने भी इंतिखाब इतने है,
समन्दरों को भी पल में बहा के ले जाए
हमारी आँख में आँसू ज़नाब इतने है,
नक़ाबपोशो की बस्ती में शख्सियात कहाँ ?
हर एक शख्स ने पहने नक़ाब इतने है,
हमारे शेर को दिल की नज़र की हाज़त है
हर एक लफ्ज़ में हुस्न ओ शबाब इतने है,
हमें तलाश है ताबीर की मगर हमदम
छिपा लिया है सभी कुछ ये ख़्वाब इतने है,
कभी ज़ुबान खुली तो बताएँगे हम भी
तेरे सवाल के यूँ तो जवाब इतने है,
तमाम काँटे भरे है हमारे दामन में
तुम्हारे वास्ते लाये गुलाब इतने है,
मैं चाह कर भी ना कर सका कभी पूरे
तुम्हारी आँख में पोशीदा ख़्वाब इतने है,
वफ़ा के बदले वफ़ा क्यूँ नहीं मिलता
सवाल एक है लेकिन जवाब इतने है..!!
























