किसी का साथ मियाँ जी सदा नहीं रहा है
मगर दिलों को अभी सब्र आ नहीं रहा है,
यही तो है जो ख़यालों से जा नहीं रहा है
ये आदमी जो मेरा फ़ोन उठा नहीं रहा है,
हमारे बीच कोई बा वफ़ा नहीं रहा है
ये बात कोई किसी को बता नहीं रहा है,
मेरे अज़ीज़ मेरी ग़ीबतों में लग गए हैं
कि अब किसी को कोई मश्ग़ला नहीं रहा है,
कहीं उसे मेरा नेमुल बदल न मिल गया हो
कई दिनों से मेरी सम्त आ नहीं रहा है,
ये चंद फ़ैसला कुन साअतें हैं सब के लिए
इसी लिए तो कोई मुस्कुरा नहीं रहा है,
सब अपने अपने कटोरे लिए खड़े हुए हैं
किसी के हाथ अभी कुछ भी आ नहीं रहा है,
तेरे गुनाह से पर्दा ज़रूर उठेगा
अभी तो ख़ैर कोई भी उठा नहीं रहा है,
जो रंग मुझ से मेरे नाक़िदीन चाहते हैं
वो रंग मेरी कहानी में आ नहीं रहा है..!!
~शकील जमाली