किस एहतियात से उसने नज़र बचाई है
ज़माना अब भी समझता है आशनाई है,
मेरे अज़ीज़ है इसका इलाज़ ना मुमकिन
यह चोट वो है जो अपनों से मैंने खाई है,
ये दिन भी देख लिया आपकी मुहब्बत में
हमारी ही चीज अब हमारी नहीं पराई है,
ख़ामोशी का मतलब है ख़ुदकशी करना
और एक लफ्ज़ भी बोलो तो बे वफ़ाई है,
ये चंद अश’आर जो लोगो को याद है तेरे
ऐ मेरे दोस्त ! फक़त यही तो तेरी कमाई है..!!
~हसीब सोज़