ख़्वाबों की तरह गोया बिखर जाएँगे हम भी
चुप चाप किसी रोज़ गुज़र जाएँगे हम भी,
हम जैसे कई लोग चले जाते हैं हर रोज़
क्या होगा किसी रोज़ जो मर जाएँगे हम भी,
हम लोग नहीं कुछ भी मगर लौह ए ज़माँ पर
एक नक़्श कोई अपना सा धर जाएँगे हम भी,
ओढ़े हुए हैं रूह पे हम दाग़ों भरी ख़ाक
जब उतरेगी ये ख़ाक निखर जाएँगे हम भी,
एक आइना ऐसा कि जो बातिन भी दिखा दे
आएगा मुक़ाबिल तो सँवर जाएँगे हम भी,
रहना है किसे ख़्वाब सी दुनिया में हमेशा
काशिफ़ किसी दिन लौट के घर जाएँगे हम भी..!!
~काशिफ़ रफ़ीक़