ख़ुद से इतनी भी अदावत तो नहीं कर सकता
अब कोई मुझ से मोहब्बत तो नहीं कर सकता,
क्यूँ निभाएगा वो पैमान ए वफ़ा मुझ से कि वो
सारी दुनिया से बग़ावत तो नहीं कर सकता,
गो वो मुजरिम है मेंरा फिर भी किसी शख़्स से मैं
अपने दिलबर की शिकायत तो नहीं कर सकता,
दो घड़ी साँस तो लेने दे मुझे ऐ ग़म ए दहर
कोई हर आन मशक़्क़त तो नहीं कर सकता,
ख़ास होता है किसी का कोई मंज़ूर ए नज़र
कोई हर एक पे इनायत तो नहीं कर सकता,
कैसे लिखूँ मैं अँधेरे को उजाला काशिफ़
अपने फ़न से मैं ख़यानत तो नहीं कर सकता..!!
~काशिफ़ रफ़ीक़






















