ख़ुद हो गाफ़िल तो अक्सर ये भी भूल जाते है

ख़ुद हो गाफ़िल तो अक्सर ये भी भूल जाते है
कि ख़ुदा सब देख रहा है वो अंजान नहीं है,

चाहे तुम कण कण में कहो या ज़र्रे ज़र्रे में
ना हो वो मौज़ूद ऐसा तो कोई मकान नहीं है,

अपना ही वादा वफ़ा नहीं करते ये बदबख्त
आख़िर है तो इन्सान ही कोई हैवान नहीं है,

तुझे अपना कहने से भी अब कतराने लगे है
मगर एक तू है जो अब भी पशेमान नहीं है,

वाकिफ़ थे तेरी हरकतों से पहले से ही हम
गिर गया जो कुछ और मेयार तो हैरान नहीं है,

वक़्त तो लगा तेरे शराफ़त का चोला उतरने में
मगर ना पहचानते हम इतने बदगुमान नहीं है,

रंगों के भरम से गीदड़ो को भी शेर समझ ले
साहब अब हम लोग इतने भी नादान नहीं है,

कोई भी फूट डाले और राज करता रहे हम पे
बाबू अब ये वो अंग्रेजो वाला हिन्दुस्तान नहीं है,

किसी भी आंडू पांडू की पहुँच हो जाए इस तक
ये मेरा वतन है किसी ग़रीब का गिरेबान नहीं है,

फ़र्क तो समझो हरामखोरी और सरफ़रोशी में
जान देना वतन पे फर्ज़ है कोई एहसान नहीं है..!!

~नवाब ए हिन्द

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