ख़िज़ाँ रसीदा चमन में अक्सर

ख़िज़ाँ रसीदा चमन में अक्सर
खिला खिला सा गुलाब देखा,

गज़ब का हुस्न ओ शबाब देखा
ज़मीन पर मैंने माहताब देखा,

किसी के रुख पे परी सा गेसू
किसी के रुख पे नक़ाब देखा,

वो आये मिलने यकीन कर लो
कि मेरी आँखों ने ख़्वाब देखा,

जो टूटी तौबा तो छलके सागर
जो उनको पीते शराब देखा,

न देखो रोज़ ए हिसाब या रब
ज़मीं पे जितना अज़ाब देखा,

मिलेगा इंसाफ़ कैसे किसी को
सदाक़तों पे नक़ाब देखा..!!

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