कर्ब ए फ़ुर्क़त रूह से जाता नहीं…

कर्ब ए फ़ुर्क़त रूह से जाता नहीं
हल कोई ग़म का नज़र आता नहीं,

काश होता इल्म ये इंसान को
जो गुज़र जाता है वो पल आता नहीं,

मिट गया शिकवे से लुत्फ़ ए इंतिज़ार
अब हमें वो राह दिखलाता नहीं,

हम वफ़ाएँ कर के भी हैं शर्मसार
वो जफ़ाएँ कर के भी शरमाता नहीं,

दर्द वो इनआ’म है ‘साहिल’ कि जो
हर किसी इंसाँ को रास आता नहीं..!!

~अब्दुल हफ़ीज़ साहिल क़ादरी

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