काली रात के सहराओं में नूर सिपारा लिखा था
जिस ने शहर की दीवारों पर पहला ना’रा लिखा था,
लाश के नन्हे हाथ में बस्ता और एक खट्टी गोली थी
ख़ून में डूबी इक तख़्ती पर ग़ैन ग़ुबारा लिखा था,
आख़िर हम ही मुजरिम ठहरे जाने किन किन जुर्मों के
फ़र्द ए अमल थी जाने किस की नाम हमारा लिखा था,
सब ने माना मरने वाला दहशतगर्द और क़ातिल था
माँ ने फिर भी क़ब्र पे उसकी राज दुलारा लिखा था..!!
~अहमद सलमान