जो कल हैरान थे उन को परेशाँ कर के छोड़ूँगा
मैं अब आईना ए हस्ती को हैराँ कर के छोड़ूँगा,
दिखा दूँगा तमाशा दी अगर फ़ुर्सत ज़माने ने
तमाशाए ए फ़रावाँ को फ़रावाँ कर के छोड़ूँगा,
किया था इश्क़ ने ताराज जिस सेहन ए गुलिस्ताँ को
मैं अब उस पर मोहब्बत को निगहबाँ कर के छोड़ूँगा,
अयाँ है जो हर इक ज़र्रे में हर ख़ुर्शीद में अजमल
मैं उस पर्दानशीं को अब नुमायाँ कर के छोड़ूँगा..!!
~अजमल सिराज
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