जिसकी ख़ातिर मैने दुनिया की तरफ़ देखा न था

जिसकी ख़ातिर मैने दुनिया की तरफ़ देखा न था
वो मुझे यूँ छोड़ जाएगा कभी सोचा न था,

उस के आँसू ही बताते थे न अब लौटेगा वो
इस से पहले तो बिछड़ते वक़्त यूँ रोता न था,

रह गया तन्हा मैं अपने दोस्तों की भीड़ में
और हमदम वो बना जिस से कोई रिश्ता न था,

क़हक़हों की धूप में बैठे थे मेरे साथ सब
आँसुओं की बारिशों में पर कोई भीगा न था,

अश्क पलकों पे बिछड़ कर अपनी क़ीमत खो गया
ये सितारा क़ीमती था जब तलक टूटा न था,

मरमरीं गुम्बद पे रुकती थी हर एक प्यासी नज़र
पर किसी ने मक़बरे में ग़म छुपा देखा न था..!!

~अतीक़ अंज़र

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