होंठों पे हँसी आँख में तारों की लड़ी है
वहशत बड़े दिलचस्प दो राहे पे खड़ी है,
दिल रस्म ओ रह ए शौक़ से मानूस तो हो ले
तकमील ए तमन्ना के लिए उम्र पड़ी है,
चाहा भी अगर हम ने तेरी बज़्म से उठना
महसूस हुआ पाँव में ज़ंजीर पड़ी है,
आवारा ओ रुस्वा ही सही हम मंज़िल ए शब में
एक सुब्ह ए बहाराँ से मगर आँख लड़ी है,
क्या नक़्श अभी देखिए होते हैं नुमायाँ
हालात के चेहरे से ज़रा गर्द झड़ी है,
कुछ देर किसी ज़ुल्फ़ के साए में ठहर जाएँ
क़ाबिल ग़म ए दौराँ की अभी धूप कड़ी है..!!
~क़ाबिल अजमेरी