हिज्र के मौसम ए तन्हाई के दुख देखे
एक चेहरे के पीछे कितने दुख देखे,
एक सन्नाटा पहरों ख़ून रुलाता है
एक आवाज़ की ख़ातिर कैसे दुख देखे,
मैं भी अपनी ज़ात में तन्हा फिरता हूँ
तुम ने भी बे ख़्वाब रुतों के दुख देखे,
जिन बच्चों ने हँसना भी न सीखा था
उन बच्चों ने सब से पहले दुख देखे,
तुम को देखा है तो ये महसूस हुआ
कैसे मुरझाते हैं चेहरे दुख देखे,
हम दोनों ने एक दूजे को जान लिया
हम दोनों ने एक दूजे के दुख देखे,
जिस को जीना है दुनिया में दस्तूरन
लाज़िम है वो सब से पहले दुख देखे,
अब लोगों के चेहरों पर ये लिखा है
इन लोगों ने सुख के बदले दुख देखे,
हम लोगों का बचपन कैसा बचपन था
हम लोगों ने कैसे कैसे दुख देखे,
रात गए तक मैं ने उस की यादों में
जैसे शे’र लिखे थे वैसे दुख देखे,
दानिश कैसा कर्ब छुपाए फिरता है
शे’र कहे रातों को जागे दुख देखे,
दानिश हम ने जिस रुत में जीना सीखा
वो रुत गुज़री सपने टूटे दुख देखे..!!
~नून मीम दनिश

























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