गुलाब चाँदनी रातों पे वार आये हम
तुम्हारे होंठों का सदका उतार आये हम,
वो एक झील थी शफ्फाक़ नील पानी की
उसमें डूब के ख़ुद को निखार आये हम,
तेरे ही लम्स से उनका खराज़ मुमकिन है
तेरे बगैर जो उम्रे गुज़ार आये हम,
फिर उस गली से गुज़रना पड़ा तेरी खातिर
फिर उस गली से बहुत बे क़रार आये हम,
ये क्या सितम है कि इस नशा ए मुहब्बत में
तेरे सिवा भी किसी को पुकार आये हम..!!