गँवाई किस की तमन्ना में ज़िन्दगी मैं ने

गँवाई किस की तमन्ना में ज़िन्दगी मैं ने
वो कौन है जिसे देखा नहीं कभी मैं ने,

तेरा ख्याल तो है पर तेरा वज़ूद नहीं
तेरे लिए तो ये महफ़िल सजाई थी मैं ने,

तेरे अदम को गँवारा न था वज़ूद मेरा
सो अपनी बीख कनी में कमी न की मैं ने,

हैं मेरे ज़ात से मंसूब सद फ़साना ए इश्क़
और एक सतर भी अब तक नहीं लिखी मै ने,

ख़ुद अपने इशवा ओ अंदाज़ का शहीद हूँ मैं
ख़ुद अपनी ज़ात से बरती है बेरुखी मैं ने,

ख़राश नगमा से सीना छिला हुआ है मेरा
फुगाँ कि तर्क न की नगमा परवरी मैं ने,

दवा से फ़ायेद मक़सूद था ही कब कि फक़त
दवा के शौक़ में सेहत तबाह की मैं ने,

सरुर ए मय पे भी ग़ालिब रहा शऊर मेरा
कि हर रियायत ए गम ज़हन में रखी मैं ने,

गम ए शऊर कोई दम तो मुझको मोहलत दे
तमाम उम्र जलाया है अपना जी मैं ने,

इलाज़ ये है कि मज़बूर कर दिया जाऊँ
वगरना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैं ने,

रहा मैं सदा ही तन्हा नशीन ए मसनद ए गम
और अपने क़रीब अना से गरज़ रखी मैं ने..!!

~जौन एलिया

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