फिरूँ ढूँढ़ता मयकदा तौबा तौबा
मुझे आज कल इतनी फ़ुर्सत नहीं है,
सलामत रहे तेरी आँखों की मस्ती
मुझे मय कशी की ज़रूरत नहीं है,
ये तर्क ए तअ’ल्लुक़ का क्या तज़्किरा है
तुम्हारे सिवा कोई अपना नहीं है,
अगर तुम कहो तो मैं ख़ुद को भुला दूँ
तुम्हें भूल जाने की ताक़त नहीं है,
हमेशा मेरे सामने से गुज़रना
निगाहें चुरा कर मुझे देख लेना,
मेरी जान तुम मुझ को इतना बता दो
ये क्या चीज़ है गर मोहब्बत नहीं है,
हज़ारों तमन्नाएँ होती हैं दिल में
अभी तो बस एक तमन्ना यही है,
मुझे एक दफ़ा अपना कह के पुकारो
बस इस के सिवा कोई हसरत नहीं है..!!
~अज्ञात
कहना ग़लत ग़लत तो छुपाना सही सही
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