फिर यूँ हुआ कि रास्ते यकज़ा नहीं रहे
वो भी अना परस्त था मैं भी अना परस्त,
फिर यूँ हुआ कि साथ तेरा छोड़ना पड़ा
साबित हुआ कि लाज़िम ओ मलज़ूम कुछ नहीं,
फिर यूँ हुआ कि हाथ से कश्कोल गिर गया
खैरात ले के मुझसे चला तक नहीं गया,
वो कर नहीं रहा था मेरी बात का यकीन
फिर यूँ हुआ कि मर के दिखाना पड़ा मुझे,
फिर यूँ हुआ कि शेर सारे खत्म हो गए
फिर यूँ हुआ कि सर को खुजाने लगे सभी,
फिर यूँ हुआ कि ज़िस्म ही पत्थर का हो गया
रोका जब एक शख्स की आवाज़ ने मुझे,
फिर यूँ हुआ कि दिल को लगन लग गई तेरी
फिर यूँ हुआ सुकून का कोई पल नहीं मिला..!!