एक जाम खनकता जाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है
एक होश रुबा इनआ’म कि साक़ी रात गुज़रने वाली है,
वो देख सितारों के मोती हर आन बिखरते जाते हैं
अफ़्लाक पे है कोहराम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है,
गो देख चुका हूँ पहले भी नज़ारा दरिया नोशी का
एक और सला ए आम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है,
ये वक़्त नहीं है बातों का पलकों के साए काम में ला
इल्हाम कोई इल्हाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है,
मदहोशी में एहसास के ऊँचे ज़ीने से गिर जाने दे
इस वक़्त न मुझ को थाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है..!!
~क़तील शिफ़ाई