दिल को हर लम्हा बचाते रहे जज़्बात से हम
इतने मजबूर रहे हैं कभी हालात से हम,
नशा ए मय से कहीं प्यास बुझी है दिल की
तिश्नगी और बढ़ा लाए ख़राजात से हम,
आज तो मिल के भी जैसे न मिले हों तुझ से
चौंक उठते थे कभी तेरी मुलाक़ात से हम,
इश्क़ में आज भी है नीम निगाही का चलन
प्यार करते हैं उसी हुस्न ए रिवायात से हम,
मर्कज़ ए दीदा ए ख़ुबान ए जहाँ हैं भी तो क्या
एक निस्बत भी तो रखते हैं तेरी ज़ात से हम..!!
~जाँ निसार अख़्तर